गले की एक आम बीमारी टांसिलाइटिस tonsillitis in hindi

गले की बीमारियों में एक प्रमुख बीमारी है पहले tonsillitis टांसिलाइटिस की बीमारी प्रायः शीत काल के दिनों में हुआ करती थी पर आजकल यह बीमारी आमतौर पर होती पाई जा रही है और किसी भी ऋतु में हो जाती है। इसके कई कारण है। आजकल मिलावटी खाद्यपदार्थ, खराब तैल से बने खाद्य पदार्थ, खराब क्रिस्म के बने खाद्य पदार्थ, खराब ढंग से और खराब खाद्य सामग्री से बने खाद्य पदार्थ खाना, नाना प्रकार के स्वाद और सुगन्ध वाली मिठाइयां, कोल्ड ड्रिंक्स, आइसक्रीम, पान मसालों और गुटके का सेवन, फ्रिज में रखे हुए पानी और खाद्य पदार्थों का सेवन आदि कारण तो खान पान से यानि आहार से सम्बन्धित हैं और बिहार यानि रहन सहन से सम्बन्धित कारणों में सुबह देर तक सोना, धूप में घूमते हुए या घर पहुंच कर तत्काल ठण्डा पानी पीना, वातावरण में व्याप्त धूल, डीजल पेट्रोल का धुआं यानि दूषित पर्यावरण, धूम्रपान, गले और दांतों की ठीक से, सुबह शाम, साफ सफाई न करना आदि कारण टांसिलाइटिस पैदा करते हैं। बच्चों को तो यह व्याधि होती ही है क्योंकि बच्चे होने के कारण वे उचित ढंग से आहार-विहार नहीं कर पाते, न माफ सफ़ाई रख पाते हैं, लेकिन उन बड़ी आयु वालों को भी होती है जो उम्र से तो बड़े हो चुके होते हैं पर आदतों के मामले में बच्चे ही होते हैं। लक्षणों के अनुसार, उचित दवा का चुनाव कर सेवन करने पर, टांसिलाइटिस की शिकायत से हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है। आपरेशन कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

टांसिलाइटिस क्या हैं what is tonsillitis

गले में, कण्ठ के अगल-बगल में दोनों तरफ बादाम के आकार की दो ग्रन्थियां होती है जिन्हें गलवाताभ या तालुमूल ग्रन्थि कहते हैं। अंग्रेजी में इन्हें टांसिल (Tonsil) कहते हैं। इन पर शोथ (Inflammation) हो जाने को टांसिलाइटिस (Tonsillitis) कहते हैं। इन ग्रन्थियों का मुख्य कार्य गले के अन्दर, आहार और वायु के द्वारा पहुंचने वाले सूक्ष्म विषाणुओं, धूल कणों तथा अन्य हानिकारक रासायनिक कणों को अन्दर न जाने देना और समाप्त कर देना है यानि ये चौकसी करने का काम करते हैं। इनके कारण ही हमारे शरीर के अन्य भाग जैसे उदर, आमाशय, पाचन संस्थान और फेफड़े आदि अनेक प्रकार के रोगों से संक्रमित होने से बचे रहते हैं। गलत खानपान और रहन सहन के कारण इन पर दूषित संक्रमण का तीव प्रभाव होने पर विशेष कर बाल्यावस्था में इन ग्रन्थियों में से किसी एक पर या दोनों पर सूजन आ जाती है और बाद में लाली आ जाती है। यह स्थिति टांसिलाइटिस कहलाती है। इससे शरीर में दर्द होता है और इन्हें जल्दी ठीक न किया जाए तो बुखार आ जाता है। टांसिलाइटिस होने का पहला लक्षण गले में खराश होना और निगलने में दर्द होना होता है।

टांसिलाइटिस होने के कारण tonsillitis reasons

टांसिलाइटिस होने के कई कारण होते है और इनमें से किसी भी एक कारण से टांसिलाइटिस हो सकता है। अधिक खटाई या खड़े पदार्थ खाना, सड़े और दूषित पदार्थ खाना, खराब तेल से बने व्यंजन खाना लगातार सर्दी जुकाम से पीड़ित रहना, गले की किसी व्याधि से ग्रस्त होना, गले पर जीवाणुओं का आक्रमण होना, इन्फेक्शन होना, गले पर तेज सर्दी का असर होना, रात में ठण्डे पदार्थों और ठण्डी प्रकृति के पदार्थों का सेवन करना, गले की सुबह शाम ठीक से साफ़ सफाई न करना, मुंह साफ़ न रखना आदि कोई भी कारण टांसिलाइटिस की स्थिति पैदा कर सकता है। आज कल नये नये प्रकार के सुगन्धित पान मसाले और गुटके खाने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। यह भी किसी किसी के लिए, टांसिलाइटिस का कारण हो जाता है।

इन ग्रन्थियों पर, दूषित प्रभाव पड़ने पर, सूजन आ जाती हैं। इनका रंग लाल, भूरा और बैंगनी हो जाता है। जल्दी ठीक न किया जाए तो इन पर पस पड़ जाता है, घाव हो जाते हैं और रोग की अन्तिम तथा तीव्र अवस्था में कमी कमी ये ग्रन्थियां फट भी जाती हैं। बीमारी पुरानी पड़ जाने पर इनमें से पस व रक्त युक्त स्त्राव होने लगता है जिसके कारण गले में कड़ी गढ़ानें पड़ जाती हैं और रोगी को मुंह खोलने, बोलने और सांस लेने में कष्ट होने लगता है, स्वर बिगड़ जाता है, आवाज बैठ जाती है। मुख से दुर्गन्ध आती रहती है, सिर दर्द बना रहता है, कुछ भी खाने पीने में तकलीफ़ होती है।

ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में, कई बार इनको काट कर निकाल दिया जाता है लेकिन होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति का मानना है कि शरीर का कोई भी अंग व्यर्थ नहीं है और प्रत्येक अंग उपयोगी है अतः उचित खान-पान और परहेज का पालन करते हुए चिकित्सा करके इस व्याधि को दूर कर लेना ही उचित है । लक्षणों के अनुसार उचित दवा का चुनाव कर सेवन करने पर यह व्याधि निश्चित रूप से दूर की जा सकती है। लक्षण और दवाओं का विवरण प्रस्तुत है

लक्षण और दवाओं का विवरण

(1) फेरम फॉस- टांसिलाइटिस की प्रारम्भिक अवस्था हो जैसे गले में खराश, निगलने में कष्ट होना, टांसिल्स पर लाली होना, हरारत होना आदि लक्षणों पर फेरम फॉस (Ferrum Phosphoricum) 6X शक्ति में 3-3 गोलियां, दिन में चार बार, 3-3 घण्टे से लेना चाहिए। यह बायोकेमिक दवा है।

(2) एकोनाइट- ठण्ड लगने के कारण टांसिल्स का सूज जाना, टॉसिलाइटिस की प्रारम्भिक अवस्था, टाल्स पर सात इन्फ्लेमेशन यानि शोध होना, सूखी खांसी चले, हलका बुखार यानि हरारत होना आदि लक्षणों पर एकोनाइट (Aconitum Napellus) 30 शक्ति में देना चाहिए।

(3) कैल्केरिया फॉस- बाल्यावस्था में टोसिलाइटिस होना, बच्चे का दुबला पतला. होना कमजोर होना, रक्त की कमी (एनीमिया) होना, खाने पीने की इच्छा न करे आदि लक्षणों पर बायोकैमिक दवा कैल्केरिया फॉस (Calcarea Phos) 6 x शक्ति में 3-3 गोली दिन में तीन बार देने से तुरन्त आराम होता है।

(4) वैरायटा कार्य. सका ज्यादा सूज जाना, निगलने में बहुत कष्ट होना, शीत काल में टासिलाइटिस होना, रोगी के जबड़े कमजोर होना, ठीक से चबाये बिना निगल जाता हो आदि लक्षणों पर बैरायटा कार्य. (Baryta Carbonica) 30 शक्ति में देना चाहिए।

(5) काली म्यूर टांसिलाइटिस इतना बढ़ जाए कि सांस लेना दूभर हो जाए और टांसिल्स भूरे पड़ जाए तो काली म्यूर (Kali Mur.) 30 शक्ति में देना चाहिए।

(6) बेलाडोना गले में छिला हुआ सा महसूस हो या ऐसा लगे कि गला अन्दर से सिकुड़ रहा हो, गले में विशेष कर दाहिनी तरफ दर्द हो, टांसिल्स का रंग लाल हो जाना आदि लक्षणों पर बेलाडोना (Belladonna) 30 शक्ति में देना चाहिए।

(7) हिपर सल्फ टांसिल्स पकने लगें, मवाद पड़ने की सम्भावना बढ़ जाए, कई दिनों से टांसिलाइटिस बना रहने से टांसिल्स कठोर होने लगें, दर्द का गले के अलावा कान तथा चेहरे के अन्य भाग तक पहुंच जाना, टांसिल्स पक चुके हो आदि लक्षणों पर हिपर सल्फ (Hepar Sulph) 200 शक्ति में देना चाहिए। यह दवा पके हुए टांसिल्स को फोड़ देती है। चीरा लगवाने की जरूरत नहीं पड़ती।

(8) साइलीशिया- टांसिलाइटिस का अत्यन्त उग्र अवस्था में पहुंच जाना, मवाद पड़ जाना और सुई चुभने जैसी पीड़ा होना आदि लक्षणों पर साइलीशिया (Silicea) 30 शक्ति में देना चाहिए।

(9) लाइकोपोडियम- टांसिल्स पर अल्सर (पाव) हो जाएं, दाहिने टांसिल्स में विशेष कष्ट हो, गर्म चीज के सेवन से तकलीफ हो और ठण्डी वस्तु के सेवन से आराम हो आदि लक्षणों पर लाइकोपोडियम (Lycopodium) 30. शक्ति में देना चाहिए।

(10) लैकेसिस- टांसिल्स का रंग बैंगनी हो जाए, स्पर्श करने में भी कष्ट हो, तरल पदार्थ निगलने में तो कष्ट हो और ठोस पदार्थ निगलने में कष्ट न हो, दर्द कान के पिछले भाग तक पहुंचता हो, बायें तरफ का टांसिल विशेष रूप से प्रभावित हो आदि लक्षणों पर लैकेसिस (Lachesis ) 30 शक्ति में देना चाहिए।

(11) फाइटोलैका गले का लाल पड़ जाना, उस पर नीले धब्बे दिखाई दें, छूने पर गला गर्म लगना, जीभ में अकडन होना, कानों में रुक-रुक कर दर्द की टीस उठना, जबड़ा ठीक से न खुले, मुंह से लार गिरना, दाहिना टांसिल्स विशेष रूप से सूजा हो आदि लक्षणों पर फाइटोलका (Phytolacca) 30 शक्ति में देना चाहिए।

(12) मयूरियस आयोड. रूबर बायीं तरफ के टांसिल की स्थिति बदतर हो जाना, टांसिल के साथ-साथ गल द्वार का लाल सुर्ख हो जाना, उपजिव्हा (कागला) का बढ़ जाना और दर्द करना आदि लक्षणों पर मक्यूरियस आयोड रुबेर (Mercurlus) lodatus Ruber) 30 शक्ति में देना चाहिए।

(13) पल्सेटिला- टांसिलाइटिस के साथ साथ लार ग्रन्थियों में भी सूजन हो, कानों में तेज दर्द हो, कानों की जड़ में गांठ उभर आई हो, जबड़ा खोलने में अत्यन्त कष्ट हो, स्तनों और अण्डकोशों में संक्रमण (इन्फेक्शन) हो गया हो आदि लक्षणों पर पल्सेटिला (Pulsatilla) 30 शक्ति में देना चाहिए।

( 14 ) लेडम टांसिलाइटिस के कारण गले में टिटेनस होने की आशंका हो तो लेडम (Ledum) 200 शक्ति में लेना चाहिए और चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए।

(15) एलूमिना प्रारम्भिक अवस्था में गले का एक दम सूख जाना, अत्यधिक खुश्की, मुख में लालारस न बनना, टांसिलाइटिस हो जाने के बाद अन्न नलिका में सिकुड़न होने का आभास होना, ठण्ड या नमी के मौसम में टांसिलाइटिस होना, टांसिल्स का कठोर हो जाना आदि लक्षणों पर एलूमिना (Alumina)30 शक्ति में देना चाहिए।

(16) वैरायटा म्पूर- टांसिलाइटिस की शिकायत काफी पुरानी हो, अवस्था गम्भीर हो, टांसिल्स बहुत बढ़ गये हों, सांस लेने में तकलीफ हो, रक्त मिश्रित यस निकलता हो, मुख से सडी दुर्गन्ध आती हो, बहुत कमजोरी आ गई हो, रोगी में तपेदिक के आनुवांशिक लक्षण पाये जाते हो तो वैरायटा स्यूर (Baryta Mur. 3200 शक्ति में सप्ताह में एक बार देना चाहिए। इसके बाद 15 दिन तक ३० शक्ति में दिन में तीन बार देना चाहिए।

(17) नेटम फॉस- धूम्रपान और पान मसाले खाने का आदी, क्रोधी स्वभाव, पेट में अम्लता, जीम पर सफेद रंग की परत जमी हो और टांसिलाइटिस की शिकायत हो तो नेम फॉस (Natrum Phos) 6 x की 5-5 गोलियां, एक सप्ताह तक, दिन में 3 बार देना चाहिए।

इतना विवरण टांसिलाइटिस रोग को दूर करने के लिए पर्याप्त है क्योंकि इतनी दवाइयों की चर्चा में टांसिलाइटिस के अधिकांश लक्षणों का परिचय दे दिया गया है जिनके अनुसार उचित दवा का सेवन करने पर टांसिलाइटिस से छुटकारा मिल जाएगा, यह बात निश्चित है। आपरेशन कराने की नौबत नहीं आएगी। छोटे बच्चों के लिए तो यह चर्चा और ज्यादा काम की साबित होगी क्योंकि छोटे बच्चे दवा बड़ी मुश्किल से पीते है जबकि होमियोपैथी की छोटी छोटी मीठी 2-3 गोली उनको खिला देना जरा भी मुश्किल नहीं होता । टांसिलाइटिस बच्चों को ही ज्यादातर होता भी है तो मैंने 16-17 दवाएं बता कर यह मुश्किल, आसान करने की कोशिश की है। माताएं जब इनमें से कोई दवा चुन कर बच्चे को देंगी और बच्चे का टांसिलाइटिस ठीक हो जाएगा तो मेरी कोशिश सफल भी हो जाएगी। यह मेरी कामना है और यह मेरी साधना भी, कि सब सुखी हो, सब निरोग रहें।

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shelendra kumar

नमस्कार दोस्तों , में Shelendra Kumar (Founder of healthhindime.com ) हिंदी ब्लॉग कॉन्टेंट राइटर हूँ और पिछले 4 वर्षो से हेल्थ आर्टिकल्स के बारे में ब्लॉग लिख रहा हूँ मेरा उद्देस्य लोगो को हेल्थ के बारे में अधिक से अधिक जानकारी देना हैं

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