आंत्रशोथ एक घातक उदर रोग gastroenteritis in hindi

आजकल गलत आहार-विहार, प्रदूषित खाद्य सामग्री, दूषित जल व अन्य पेय पदार्थों के कारण कई तरह के रोग उत्पन्न हो रहे हैं। gastroenteritis इनमें से ही एक कठिन साध्य रोग है आंत्रशोथ यानि आंतों पर सूजन आ जाना। यह रोग क्यों उत्पन्न होता है व उसकी क्या चिकित्सा की जाए

विभिन्न प्रकार के उदर रोगों की समस्याएं लेकर आजकल रोगी जब चिकित्सक के पास जाता है तो आजकल अधिकांश रोगी आंत्रशोध के पाए जाते हैं। आंत्रशोथ gastroenteritis यानि आंतों पर सूजन ग्रामीण क्षेत्र में अक्सर देखने में आता है कि पेट दर्द होने पर पेट की मालिश की जाती है, कुछ विरेचक (पेट साफ करने वाली) औषधियों का भी प्रयोग करते हैं। इनसे कभी कभी आराम भी मिल जाता है। लेकिन कई बार बहुत समय तक आराम नहीं मिलता और स्थिति गम्भीर और घातक बन जाती है। इसलिए यदि जाँच में चिकित्सक आंत्रशोथ पाता है तो उसका सम्यक उपचार किया जाना चाहिए। जिससे तात्कालिक दर्द से तो आराम मिलता है एवं दीर्घकालिक गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। मुख्यतः आंतों से तात्पर्य छोटी आंत और बड़ी आंत से है। दोनो का कार्य शरीर के लिए बहुत ही। महत्वपूर्ण होता है। आंत्रशोथ gastroenteritis में साधारण पेट दर्द, ऐंठन से लेकर घातक स्थिति भी हो सकती है। आंतों का कार्य क्रमशः पाचन क्रिया में सहायक, अवशोषण एवं अपशिष्ट द्रव्यों का मल के रूप में बाहर निष्कासन होता है। जो भी मुंह द्वारा आहार लेते हैं, उसकी पाचन क्रिया मुंह में लार द्वारा शुरू हो जाती है। लेकिन सम्पूर्ण पाचन एवं अवशोषण आंतों द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है।

वर्तमान समय में अनेक बीमारियां, नई नई व्याधियां उत्पन्न हो रही है। इनमें से कई बीमारियों को ऑटो इम्यून डिजीज के नाम से चिन्हित किया जा रहा है। उन पर कई तरह के प्रयोग चल रहे हैं। लेकिन परिणाम आशाजनक नहीं मिल पा रहे हैं। ऑटो इम्यून डिजीज से अभिप्राय उन बीमारियों से है जिसमें शरीर की सुरक्षा प्रणाली ही शरीर को रोगी बना रही हो। ये स्थिति आम आदमी को सोचने पर मजबूत कर देती है कि भला खुद शरीर का सुरक्षा तंत्र शरीर को कैसे रोगी बना सकता है।

इसको साधारण बोलचाल की भाषा में हम समझने की कोशिश करें तो जब हम भोजन करते हैं तो उसकी पाचन की निश्चित प्रक्रिया होती है। जिससे हमारी जठरात्रि एवं धातुत्वाग्गियो से भोजन का चयापचय होता है। इस भोजन का सम्यक पाचन होने पर सम्पूर्ण शरीर भोजन प्राप्त करता है। यदि देश, काल, प्रकृति विरुद्ध भोजन किया गया तो शरीर की अग्रियाँ, अल्प आहार भी सम्यक रूप से नहीं पचा पाती है, परिणाम स्वरूप अपक्व अन्न रस बनता है। अपक्व रस आंतों द्वारा अवशोषित होकर जिस जिस अवयव में संचित होता है उस अवयव को धीरे-धीरे रोग ग्रस्त बना देता है। जिससे दीर्घकालिक रोग बन जाता है। यानि जो अन्न रस निराम होकर सम्पूर्ण शरीर का पोषण करेगा। वहीं अन्नरस आमयुक्त होकर शरीर को रोगी बनाएगा। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में आंतों का विशेष योगदान होता है। अतः हमें आंत्रशोथ को . साधारण बीमारी न मानकर योग्य चिकित्सक से निदान कराकर पूर्ण चिकित्सा करानी चाहिए। कई बार रोगी अलग-अलग नुस्खों से या ईसबगोल या विरेचन चूर्ण लेकर स्वयं इलाज करते हैं एवं उससे आंशिक लाभ भी होता है किन्तु दीर्घकालिक और पूर्णकालिक आराम के लिए इस बीमारी के बाद में होने वाले कष्टों को ध्यान में रखकर चिकित्सा की व करायी जाना चाहिए।

हम जितना भी खाते है जो भी खाते हैं। उसकी मात्रा हमारे अग्नि बल के अनुसार होनी चाहिए। तीक्ष्ण अग्नि वाला ज्यादा मात्रा में खा कर भी शीघ्र पचा लेगा एवं क्षीण अग्नि वाला कम मात्रा में खा कर भी देर से पचा सकेगा। यानि बिना कष्ट के यथा समय जितना भोजन पच जाये वही उचित मात्रा है अतः आहार की मात्रा का ध्यान रखा जाना आवश्यक है। यदि अन्न ज्यादा मात्रा में लिया और समय पर पाचन नहीं हुआ तो फिर वो अपच, कब्ज, गैस और आंतों के रोग पैदा करेगा।

आतों पर सूजन आ जाने पर वो तात्कालिक भी हो सकती है जो कुछ समय होकर ठीक हो जाए और दीर्घकालिक भी हो सकती है। कई बार आजीवन कष्ट बना रहता है। इस व्याधि में नाभि के चारों ओर दर्द, बैचेनी, अरुचि, उल्टी दस्त, जी मिचलाना, ज्वर, आंव के साथ रक्त, अग्निमांध्य, भूख की कमी, कमजोरी, पिण्डलियों में दर्द आदि लक्षण बने रहते हैं।

आंत्रशोथ gastroenteritis होने के प्रमुख कारण

(1) अनुवांशिक – कुछ परिवारों में आंतों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक विकृति के कारण वंशानुगत आंत्रशोथ बना रहता है।

(2) आंत्रिक ज्वर – आन्तरिक ज्वर का सम्यक उपचार न होने पर आंतों पर स्थायी या अस्थायी शोथ, शिथिलता, अलसर आदि हो सकते है।

(3) विवन्ध – आंत्रशोथ gastroenteritis में कब्ज एक विशेष कारण होता है।

(4) आहार – आंत्रशोथ gastroenteritis में वर्तमान आहार विशेष कारण होता है। प्रकृति विरुद्ध भोजन से आंतों में शोथ बना रहता है। हमारे आहार में सम्मिलित तत्व, आहार बनाने की प्रक्रिया, आहार नियम इन सभी से हम अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। जल्दबाजी, समयाभाव, स्वाद, परम्परागत भोजन में समय की अधिकता, अन्न फल, सब्जियों का ऋतु अनुसार न होना, कोल्डस्टोरेज में रखे हुए होना, फ्रीज, माइक्रोवेव ओवन आदि उपकरण से किसी भी समय का भोजन उपलब्ध होना जो देश काल प्रकृति विरुद्ध माना जाता है

डिब्बा बन्द भोजन में प्रिजर्वेटिव की अधिकता होती है। जिसका प्रचलन अधिक होता जा रहा है। यदि ऐसे भोज द्रव्यों को बार बार उपयोग में लेंगे तो नुकसानदायक सिद्ध होते. है। भोजन में तेज मिर्च मसाले, खटाई, नमकीन कचौरी, समोसा, पिज्जा, बर्गर, अधिक चाय, काफी, शराब, गुटखा ऐसे रोगों के परोक्ष अपरोक्ष कारण होते हैं। जैसे गुटखे से इरिटेशन (उत्तेजना) होकर आंत्र शोथ हो सकता है। एवं अपरोक्ष रूप से गुटखा खाने वाले दिन भर थूकते है जिसमे ऐसे एन्जाइम्स जो पचाने के लिए जरूरी होते हैं निकल जाते हैं। परिणाम स्वरूप भोजन अपक्व अन्न रस बनाकर आंत्र शोथ उत्पन्न करता है।

(5) जल– आंत्रशोथ के मुख्य कारणों में जल सबसे प्रमुख है। जल के माध्यम से अनेक तरह के कीटाणु जीवाणु-विषाणु पेट में प्रवेश कर शोथ उत्पन्न करते हैं।

मानसिक कारण – वर्तमान समय में तनाव, अवसाद, अनिद्रा या अतिनिद्रा, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष आदि कारणों से न्यूरोसिस (तंत्रिका रोग) होता है। जिससे शरीर में एसिड की मात्रा अधिक बनती है। उसके कारण भी आंत्रशोध हो सकता है।

इसके अतिरिक्त अल्सरेटिव कोलाइटिस, कैंसर से कोलाइटिस क्षय के कारण, जीर्ण ज्वर, संग्रहणी, विसूचिका कृमि रोग आदि भी इस रोग को उत्पन्न करते हैं।

अन्य कारण – आहार विषाक्तता, खाद्य पदार्थों में विष, अनेक तरह की दवाइयां, फंगस, विषैले जीव, भोजन पानी के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं या शरीर पर काटकर अन्दर पहुंचते हैं। शारीरिक स्वच्छता की भी कमी के कारण शोध हो सकता है कुछ दवाइयां लम्बे समय तक प्रयोग करने पर आंत्र शोथ पैदा कर देती है।

अल्सरेटिव आंत्रशोथ – आंतों में एसिड की अधिक मात्रा होने पर आंत्र शोथ बनता है। जिसमें मुख्य रूप से पित्त प्रकृति के व्यक्ति का पित कारक आहार विहार एवं पित्तवर्धक औषधियों का अधिक सेवन करने से आंत्र शोथ हो सकता है। अम्लपित्त के रोगी, आम बात, संधिवात अन्य वात रोगों में ली जाने वाली उष्ण, तीक्ष्ण दवाइयां लेने पर सूजन बन सकती है।

आंत्रशोध के लक्षण symptoms of gastroenteritis

पेट दर्द, विशेषकर नाभि के चारों तरफ पेट फूलना, उल्टी दस्त, दस्त के साथ खून आना, अरुचि, कब्ज, थकान, पिण्डलियों में दर्द, ज्वर, सिर दर्द, काम में मन न लगना, गैस की शिकायत, पेट में जलन, मल त्याग की बार-बार प्रवृत्ति होना, मल का ढीला, कच्चा, दुर्गन्धित होना, आलस्य एवं उदासीनता होना आदि आत्र शोथ के प्रमुख लक्षण है।

आंत्रशोध के बचाव Prevention of gastroenteritis

देश, काल, प्रकृति अनुसार आहार ले मौसमी अन्न, फल, सब्जियों का प्रयोग करें। यथा सम्भव जिस जगह रहते है वहीं के आसपास उत्पन्न होने वाले अन्न, फल, सब्जियों का सेवन करें। भोजन, रसोई घर, रसोइया, बर्तन आदि स्वच्छ हो । भोजन एकाग्रचित, होकर शांत भाव से भूख के अनुसार लें। भोजन में ऋतु अनुसार गेहूँ, जौ, चना, बाजरा, मक्का, चावल, हरी सब्जियां, छिलके बाली मूंग की दाल, लौकी, तुरई, भिण्डी, परवल, करेला, बथुआ, मैथी आदि सभी तरह के फल, छाछ, दही आदि का सेवन करें।

मानसिक रूप से प्रसन्न रहे। नियमित व्यायाम, योग, प्राणायाम, आदि करें एवं अन्य शारीरिक खेलकूद एवं भ्रमण करें। प्रातः उठते ही यथा सम्भव उषा पान करे। दिन के भोजन के बाद छाछ का प्रयोग करें। रात्रि के भोजन के दो घण्टे बाद दूध का प्रयोग करें। नियमित रूप से तेल की मालिश करें। रात्रि में नींद अच्छी लेवे। स्वच्छता का प्रत्येक कार्य स्थान आदि में ध्यान रखें।

आंत्रशोध चिकित्सा treatment of gastroenteritis

(1) नागर मोथा, पित्त पापड़ा, कोशीर, चन्दन, सूंठ, धनियां इन सभी द्रव्यों से सिद्ध जल का प्रयोग करें।

(2) बेलगिरि, सूठ धनिया, नागरमोथा, पित्त पापड़ा, पुनर्नवा, गुलाब के फूल, इन्द्र जी, नेत्रवाला, खस, चन्दन इन सभी द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर पाउडर बना लें।

सेवन विधि- 3 से 6 ग्राम पावडर भूखे पेट सुबह जल से 15-6 ग्राम पावडर शाम को भूखे पेट जल से।

(3) राम वाण रस 125 एम. जी. प्रवाल पंचामृत 125 एम.जी. गिलोय सत्य 250 एम. जी. बिलवादी चूर्ण 2 ग्राम सुबह शाम दोनों समय लें।

कुटजघन वटी 2-2 गोली सुबह शाम भोजन के बाद चित्रकादि वटी 2-2 गोली एवं सॉफ अर्क 15-20एम. जी. पानी में मिलाकर लें।

(4) धान्य सप्तक क्वाथ धनिया खस, बेलगिरि, नागरमोथा, सौंफ, कुटज की छाल, समान मात्रा में लेकर यव कूट करके रख लें। 10 ग्राम लेकर 200 एम. एल पानी में धीमी आंच पर पकाएं 50 एम. एल शेष रहने पर छानकर ठण्डा कर खाली पेट सुबह शाम पिएं।

लवण भास्कर चूर्ण 5 ग्राम ताजा छाछ में मिलाकर भोजन के साथ लेवे।

उपरोक्त वर्णन से आप शोध क्या है, क्यों होता है, लक्षण क्या है और चिकित्सा क्या है ये स्पष्ट हो जाता है। फिर भी यदि आपके मन में कोई शंका, प्रश्न हो तो वैद्यजी से दिए गए मोबाईल पर सम्पर्क कर समाधान प्राप्त कर सकते हैं।

भोजन करने के उपयोगी नियम

(1) भोजन करते समय एकाग्र चित्त होकर अपना ध्यान चबाये जा रहे पदार्थ पर ही। केन्द्रित रखें ताकि खूब अच्छी तरह चबा भी सके और पदार्थ के स्वाद का अनुभव भी करते रह सकें। इसके लिए यह जरूरी है कि भोजन करते समय बातचीत न की जाए, क्रोध, शोक, चिन्ता तथा किसी अन्य विषय पर विचार न किया जाए।

(2) भोजन से पहले हाथ पैर ठण्डे पानी से धोना तथा 8/10 बार कुल्ले व गरारे करना बहुत जरूरी और गुणकारी होता है।

(3) भोजन शुरू करने से पहले ईश्वर का स्मरण करें और अत्यन्त प्रेमपूर्वक तथा धीरे धीरे भोजन करें।

(4) भूख से थोड़ी कम मात्रा में भोजन करें। भोजन के बीच में 2-3 बार घूंट घंट कर जल पिएं लेकिन भोजन के प्रारम्भ में और अन्त में ज्यादा मात्रा में जल न पिएं। 1-2 घंट जल भोजन के अन्त में पीने में हर्ज नहीं।

(5) फल खाना हो तो भोजन शुरू करते समय खाएं और कोई मीठा पदार्थ खाना हो तो भोजन के अन्त में खाएं।

(6) दुर्गन्ध युक्त, विकृत आकार के, बासे व सड़े हुए पदार्थों का सेवन न करें। भोजन ताज़ा ही करें और दोबारा गरम करके न करें।

(7) भोजन के बाद 11 बार कुल्ले करके मुंह ठीक से साफ़ करें। दांतों में कुछ फंसता हो तो कुरेदनी (Tooth-pick) से निकाल कर कुल्ले करें। भोजन के बाद 10-15 मिनिट वज्रासन में बैठ कर प्रभु का स्मरण करें या कोई मनोरंजक पुस्तक पढ़ें। एक घण्टे तक पानी न पिएं और मानसिक व शारीरिक परिश्रम न करें।

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shelendra kumar

नमस्कार दोस्तों , में Shelendra Kumar (Founder of healthhindime.com ) हिंदी ब्लॉग कॉन्टेंट राइटर हूँ और पिछले 4 वर्षो से हेल्थ आर्टिकल्स के बारे में ब्लॉग लिख रहा हूँ मेरा उद्देस्य लोगो को हेल्थ के बारे में अधिक से अधिक जानकारी देना हैं

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