आज का बढ़ता हुआ रोग अम्लपित्त Hyperacidity in hindi
Hyperacidity अनियमित ढंग से किये जाने वाले आहार-विहार एवं तले हुए, तेज मिर्च मसालेदार, मिलावटी पदार्थों से बने, उष्ण प्रकृति वाले तथा मांसाहारी व्यंजनों का सेवन करने की बढ़ती हुई प्रवृत्ति का दुष्परिणाम होता है उदर विकार और पाचन प्रणाली में दोष उत्पन्न होना। ऐसे पदार्थों के सेवन से उत्पन्न होने वाली एक व्याधि है अम्लपित्त hyperacidity जो आजकल अधिकांश लोगों को ग्रसित किये हुए है। इस विषय पर उपयोगी लेख प्रस्तुत है।
अम्ल (खट्टा) और पित्त (अग्नि) – इन दो शब्दों की सन्धि से अम्लपित्त शब्द बना है जो ऐसी व्याधि के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिसमें उदर में, अम्लता और पित्त, कुपित अवस्था में यानि बढ़ी हुई अवस्था में हों। पित्त जब निर्विकार (प्राकृत) अवस्था में होता है तब कटु और जब कुपित (विकृत) अवस्था में होता है तब खट्टा (अम्ल) हो जाता है। विकृत पित्त विदग्ध होकर जब बढ़ता है तब अम्लं विदग्धं च तत्पित्तं अम्लपित्तम्’ के अनुसार उसे ‘अम्लपित्त’ Hyperacidity होना कहते हैं।
कारण Hyperacidity reasons
परस्पर विरुद्ध गुण वाले पदार्थों का एक साथ सेवन करना, बासे और दूषित पदार्थों का सेवन करना, शराब तम्बाकू एवं अण्डा मांस का सेवन करना, उष्ण प्रकृति के तथा तले हुए, तेज मिर्च मसालेदार, खट्टे और पित्त कुपित करने वाले पदार्थों का अति मात्रा में सेवन करना आदि कारणों से उदर में एकत्रित पित्त अत्यन्त खट्टा और दूषित हो कर विदग्ध अवस्था में हो जाता है तब उसे अम्लपित्त होना कहते हैं।
लक्षण hyperacidity symptoms
जी मचलाना, मुंह का स्वाद कड़वा रहना उलटी जैसा जी होना, गले में डकार के साथ खट्टा चरपरा पानी आना, गले, छाती व पेट में जलन होना, खाया हुआ आहार का ठीक समयावधि में न पचना, बिना परिश्रम के थकावट बनी रहना, आंखों में जलन, मुंह सूखना आदि लक्षण जब प्रकट हो और बने रहें तब उसे अम्लपित्त होना कहते हैं।
परिणाम Hyperacidity results
अम्लपित्त का प्रभाव शरीर में ऊपर की तरफ़ और नीचे की तरफ दोनों तरफ होता है। ऊपर मुख मार्ग से खट्टी डकारें और नाक से गरम सांसे निकलती हैं, गले व छाती में जलन होती है और नीचे गुदा मार्ग में खट्टी, तीखी और कड़वी दुर्गन्धयुक्त अधोवायु निकलती है, पेशाब में जलन होती है और मल विसर्जन के समय कड़वी खट्टी दुर्गन्ध आती है। उलटी होने पर कड़वा, खट्टा और पीले कफ युक्त पित्त निकलता हैं और कण्ठ में जलन होती है। जब ऐसे लक्षण प्रकट हो तब उस स्थिति को अम्लपित्त होना कहते हैं।
चिकित्सा Hyperacidity treatment
अम्लपित्त होने पर सबसे पहले अपने आहार-विहार में उचित सुधार करना चाहिए। अम्लता और पित्त बढ़ाने वाले पदार्थों का आहार बन्द करके, पित्त दोष का शमन करने वाले मधुर, कषाय और तिक्त रस युक्त तथा स्निग्ध पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए। अम्ल, कटु और लवण रस वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इतना सब करते हुए घरेलू चिकित्सा के निम्नलिखित नुस्खों में से किसी एक नुस्खे का लाभ न होने तक सेवन करना चाहिए
- छिले हुए साफ किये हुए जी, अडूसा के पत्ते और आंवला इनको समान भाग लेकर मोटा-मोटा कूट कर मिला लें। तीनों का मिला हुआ चूर्ण 20 ग्राम ले कर 2 कप पानी में डाल कर काढा करें। आधा कप बचे तब उतार कर छान लें व ठण्डा कर लें। दालचीनी, छोटी इलायची, तेज पात- तीनों को समभाग लेकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण को 1 ग्राम मात्रा में काढ़े में डाल दें और एक छोटी चम्मच भर शहद डाल कर घोल लें और पी जाएं। यह योग दिन में एक बार सेवन करें और लाभ होने पर बन्द कर दें।
- छोटी हरड़, पीपल, मुनका, शक्कर, धनिया और जवासा- सब 50-50 ग्राम लेकर कूट पीस लें। इसे सुबह शाम आधा-आधा चम्मच लेकर शहद में मिला कर चाट लें। लाभ होने पर सेवन करना बन्द कर दें।
- अविपत्तिकर चूर्ण बाजार में मिलता है। इसे आधी चम्मच (लगभग 3 ग्राम) मात्रा में भोजनोपरान्त या भोजन से पहले ठण्डे पानी के साथ सुबह शाम सेवन करें। लाभ होने पर बन्द कर दें।
इनमें से कोई भी एक योग सेवन करते हुए भोजन के अन्त में एक पेठा नियमित रूप से प्रतिदिन खाते रहें। पेठा का सेवन अम्लपित्त का शमन होने के बाद भी करते रहे तो अम्लपित्त फिर होगा ही नहीं। दिन में कभी गुलकन्द और कभी आंवले का मुरब्बा खाते रहें। दूध पानी की मीठी लस्सी का सेवन करें। दूध चावल की खीर और फलों में केला, चीकू और मीठे सन्तरों का रस ग्लूकोज डाल कर या पिसी हुई मिश्री डाल कर पिया करें। पूरी पराठों का सेवन बन्द रखें।
शरीर स्वस्थ तो, मन प्रसन्न रहता है।
यदि मन प्रसन्न तो, तन स्वस्थ रहता है !!
तन मन प्रसन्न व स्वस्थ हो, तो ही जीवन सुखी होता है !!! इसके लिए उचित आहार-विहार और श्रेष्ठ आचार का होना जरूरी है
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